फरूखाबाद-२,
तारीख..........
प्यारी बहन, तुम कैसी हो घर में सब कैसे हैं। मैं यहाँ ठीक हूँ। तुम्हारे घर से मैं जो बछिया लाई थी, वह भी बिलकुल अच्छी है। हमने उसका नामकरण किया- गौरांगिनी। लेकिन हम उसे गौरा पुकारते हैं। वह आजकल बहुत खुशी के साथ रहने लगी है। हमारे अन्य पशु-पक्षियों के साथ वह हिल-मिलकर रहने लगी है। हमारे कुत्ते-बिल्लियों ने उसके पेट के नीचे और पैरों के बीच में खेलना शुरू किया है। जब तुमने एक गाय पालने का उपदेश दिया था तब मैं संदेह कर रही थी। लेकिन उसे देखते ही गाय पालने के संबंध में मेरी दुविधा थी वह निश्चय में बदल गया था। क्योंकि उसका पुष्ट सुंदर रूप मुझे बहुत आकर्षित किया था। यहाँ आकर वह ज्यादा सुंदर बनी है। घर में सबको मेरा हैलो बोलना। शेष बातें अगले पत्र में।
तुम्हारी बहन,
महादेवी
सेवा में
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जी.एच.एस.पेरिंड्॰डाश्शेरी के अजनबी हिंदी मंच से भेजा गया उपज
बातचीत
गौरा :- अरे दोस्तो.....गौरा और साथियाँ कुत्ता:- गौरा..... गौरा :- कल तू कहाँ था ? कुत्ता:- मैं इधर-उधर घूम रहा था। गौरा :- हमारी बिल्ली कहाँ है ? आज देखते ही नहीं। बिल्ली:-अरे दोस्तो...!! कुत्ता:- अरे बिल्ली...हम तुम्हारे बारे में कह रहे थे। गौरा :- हाँ बिल्ली...इतनी देर तू कहाँ थी ? बिल्ली:-मैं कोयल दीदी के पास थी। गौरा :- कोयल दीदी के पास....!! वहाँ क्या बात है ? बिल्ली:-वहाँ कोयल दीदी की गानालापन थी। कुत्ता:- अरे,क्या गानालापन खतम हो गई ? बिल्ली:-हाँ....अभी खतम हुआ है। गौरा :- अरे,हमारे कोयल दीदी की गानालापन....!!मेरी प्रिय गायिका है दीदी। कुत्ता &बिल्ली:- (एकसाथ) मेरा भी.. गौरा :- महादेवीजी की मोटर गाड़ी आ गई।देवीजी आई...बाँ....बाँ....बाँ....बाँ......... देवीजी:-अरे! प्यारे..........कैसे है ? गौरा :- देवीजी....अब तक हम सब आपकी प्रतीक्षा कर रही थी। देवीजी:-देखो,तुम्हारे लिए मैं क्या लाई हूँ..? गौरा :- अरे!हाय! दही-पेड़ा...हमारे लिए..!!! कुत्ता:- मेरा प्रिय खाद्य है यह.. बिल्ली:-मेरा भी... गौरा :- तीन दही-पेड़ा है...हम तीनो में बाँटूँ। देवीजी:- अच्छा....तुम खालो...मैं अभी आऊँ...।
(खतम)
आष्नी सलीं
कक्षा 10
जी.एच.एस.पेरिंड्॰डाश्शेरी
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അങ്ങനെ വരട്ടേ...
ReplyDeleteഅപ്പോ മനസ്സിലായി. കൊടുത്താ കൊല്ലത്തും കിട്ടും.
फरूखाबाद-२,
८८-८८-८८८८.
ഇത് എന്ന്നാ തീയതിയാ?
ക്ഷമ ചോദിക്കുന്നു
Deleteതിരക്കിനിടയിലെ ശ്രദ്ധക്കുറവ്,
എല്ലാ അഡ്മിന്മാരും കണ്ട ശേഷമേ ഇനിയുള്ള പോസ്റുകള് പ്രസിദ്ധീകരിക്കൂ
കൊടുത്താ കൊല്ലത്തുമാത്രമല്ല കൊട്ടാരക്കരയിലും കിട്ടും.
കത്തിലെ തീയ്യതി കൃത്യമായി എഴുതാന് കുട്ടികള്ക്ക് പ്രയാസമാണ്. കാരണം നമുക്ക് അറിയില്ല് മഹാദേവി വര്മ്മ അനിയത്തിക്ക് എപ്പോഴാണ് കത്തെഴുതിയതെന്ന്. അതിനാല് തീയ്യതി എഴുതുന്നതിന് പകരം तारीख ....... എന്നെഴുതി സ്ഥലം വിടുകയാണ് അഭികാമ്യം എന്ന് തോന്നുന്നു. അപ്പോള് പേപ്പര് നോക്കുന്ന അധ്യാപകര്ക്ക് മനസ്സിലാവും കുട്ടിക്ക് ഇവിടെ തീയ്യതി എഴുതണം എന്ന ധാരണയുണ്ടെന്ന്. അതുകൊണ്ട് ഒന്നും എഴുതാതിരിക്കാനോ അല്ലെങ്കില് പരീക്ഷയുടെ തീയ്യതി എഴുതാനോ കുട്ടികളെ പഠിപ്പിക്കാതിരിക്കുന്നതാണ് ഉചിതം.
ReplyDelete'अजनबी' का पत्र अच्छा निकला है। लगता है 'लेकिन उसे देखते ही मेरी दुविधा निश्चय में बदल गई' अच्छा लगेगा। कक्षा में संशोधन की प्रिक्रिया पर बल देकर ऐसी छोटी-छोटी कमियों को दूर करने की कोशिश हों।
ReplyDeleteVERY GOOD. THAAANKS
ReplyDeleteവളരെ ഉപകാരപ്രദം....
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