उद्देश्य:
समस्यापरक : मानव जीवन में मानवता कम हो रही है।
भाषापरक : आधुनिक कविता का परिचय पाएँ।
आस्वादन टिप्पणी तैयार करने की क्षमता पाएँ।
सहायक सामग्री: कविता की सी.डी., पौराणिक-ऐतिहासिक कहानियाँ।
पहला अंतर
महत् उद्देश्य की प्रतिमा नामक साक्षात्कार में समाज-सेवा में लीन डॉ. शान्त से हमें परिचय पाया है। ऐसे अनेक महान व्यक्तित्व देश के कोने-कोने में थे, अब भी हैं।
- वे कौन-कौन हैं?
- उनके महत्व का कारण क्या है?
- अब भी उनका नाम लोग आदर के साथ लेते हैं। क्यों?
दल में चर्चा हो, दलों की प्रस्तुति हो।
बैक दुर्घटना: घायल युवक घंटों तक सड़क पर पड़ा रहा।
कण्णूर: वलपट्टणम पुल के निकट हुई बैक दुर्घटना में पच्चीस वर्ष के युवक ने सड़क पर ही दम तोड़ दी। दुर्घटना के बाद वह घंटों तक सड़क पर ही पड़ा रहा , लेकिन किसी ने भी उसे अस्पताल नहीं पहुँचाया। कुछ लोग मोबाइल पर उसका फोटो खींचने में व्यस्त थे।....
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* युवक की मृत्यु कैसी हुई?
* घायल युवक के प्रति लोगों का व्यवहार कैसा था?
- लोगों में मानवीय गुण कम हो रहा है।
- अमानवीयता किसी भी दशा में कहीं भी शोभा नहीं देती।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता "मनुष्यता" यही बताती है।
वाचन प्रक्रिया:
- हमें किससे नहीं डरना चाहिए? क्यों?
- मनुष्य किससे अधिक डरता है?
- मनुष्य को कैसी मृत्यु अधिक शोभा देती है?
- किस प्रकार की मृत्यु को सुमृत्यु कहा जा सकता है?
- दूसरों के लिए जीनीवालों की मृत्यु किस तरह होती है?
- किसे वृथा जीना पड़ता है?
- किसे वृथा मरना पड़ता है?
- पशु-प्रवृत्ति से क्या तात्पर्य है?
दल में चर्चा हो। दलों की प्रस्तुति हो।
अगला अंतर
दूसरों के लिए अपने आप को समर्पित कुछ व्यक्तित्व पुराण और इतिहास में हैं।
उनका परिचय पाएँ।
वाचन प्रक्रिया:
आकलन कार्य भी करें ।
कवि ने दधीचि, कर्ण, रंतिदेव, शिबि आदि दानी व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता
के लिए क्या संदेश दिया है?
- रंतिदेव कौन थे? उन्होंने भूखे व्यक्ति से कैसा व्यवहार किया?दल में चर्चा हो। दलों की प्रस्तुति हो।
रंतिदेव
दया के लिए प्रसिद्ध राजा है रंतिदेव। उनके दरबार में अतिथियों के लिए खाने पकाने करीब बीस हज़ार नौकर नियुक्त थे।वे दिन-रात अतिथियों का स्वागत - सत्कार करने जागरुक रहे।उन्होंने अपनी सारी कमाई ब्राह्मणों को दान में दे दी। वेदाध्ययन करके रंतिदेव ने दुश्मनों को धर्म से परास्त किया । दान-कर्म के लिए मारी गई मावेशियों के चमड़े से बहे खून ने एक नदी का रूप लिया ,उस नदी का नाम है - चर्मण्यवती नदी।दिन- भर भूखा-प्यासा रहने के बावजूद एक बार रंतिदेव नेअपने महल में अतिथि बनकर आए वसिष्ठमुनि को अपना खाना देदिया।
രന്തിദേവന്റെ കഥ വീഡിയോ രൂപത്തില് കാണൂ Click Here for slide |
- दधीचि कौन थे? उन्होंने अपना अस्थिजाल क्यों दान दिया?दल में चर्चा हो। दलों की प्रस्तुति हो।दधीचिदधीची एक विख्यात ऋषि है। भृगु महर्षि का पुत्र । इंद्र ने दधीची की हड्डी से वज्रायुध बनाकर वृत्त नामक असुर का वध किया। इंद्र ने जब वज्रायुध बनाने दधीचि की हड्डी माँगी तो बिना हिचक ने अपनी हड्डी दान में दे दी और प्राण छोड़ दिए ।
Click Here For Slide - शिबि कौन थे? उन्होंने कौन-सा महत्वपूर्ण कार्य किया?दल में चर्चा हो। दलों की प्रस्तुति हो।
राजा शिबी
രാജാ ശിബിയുടെ ദാനം - തമിഴ് നൃത്തസംഗീത നാടകം ഒന്നാം ഭാഗം രാജാ ശിബിയുടെ ദാനം - തമഴ് നൃത്തസംഗീത നാടകം രണ്ടാം ഭാഗം രാജാ ശിബിയുടെ ദാനം - തമിഴ് നൃത്തസംഗീത നാടകം മൂന്നാം ഭാഗം |
- कर्ण कौन थे? अपना शरीर-चर्म दान देकर कौन-सा संदेश दिया?दल में चर्चा हो। दलों की प्रस्तुति हो।कर्ण
कर्ण महाभारत के मुख्य पात्र एवं दानवीर के रूप में प्रसिद्ध है। कर्ण के दानवीरता के भी अनेक संदर्भ मिलते हैं। उनकी दानशीलता की ख्याति सुनकर इन्द्र उनके पास कुण्डल और कवच माँगने गये थे।कर्ण ने अपने पिता सूर्य के द्वारा इन्द्र की प्रवंचनाका रहस्य जानते हुए भी उनको कुंडल और कवच दे दिये।इन्द्र ने उसके बदले में एक बार प्रयोग के लिए अपनी आमोघ शक्ति दे दी थी। उससे किसी का वध अवश्यम्भावी था। कर्ण उस शक्ति का प्रयोग अर्जुन पर करना चाहते थे । किंतु दुर्योधन के निदेश पर उन्होंने उसका प्रयोग भीम के पुत्र घटोत्कच पर किया था । अपने ्ंतिम समय में पितामह भीष्म ने कर्ण को उनके जन्म का रहस्य बताते हुए महाभारत के युद्ध में पाण्डवों का ससाथ देने को कहा था किंतु कर्ण ने इसका प्रतिरोध करके अपनी सत्यनिष्ठा का परिचय दिया ।भीम के अनंतर कर्ण कौरव सेना के सेनापति नियुक्त हुए थे।अंत में तीन दिन तक युद्ध संचालन के उपरांत अर्जुन ने उनका वध कर दिया ।कर्ण के चरित्र में आदर्शों का दर्शन उनकी दानवीरता एवं युद्धवीरता के युगपत् प्रसंगों में किया जा सकता है।
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karna gives his kavacha to indra( - देह और जीव के संबंध में कवि ने क्या बताया है?
दल में चर्चा हो। दलों की प्रस्तुति हो।
लेखन कार्य : कविता में दिए पौराणिक पात्रों के महत्व पर अपने मित्र के नाम पत्र लिखें
संकलन करें : दधीचि, कर्ण, रंतिदेव, शिबि आदि दानी व्यक्तियों की कहानियों का संकलन करें।
अगला अंतर
मानव जीवन अमूल्य है। भिन्नताओं को भूलकर एकता में रहने से सबकी भलाई होती है। रहो
कवितांश का वाचन करें।
न भूल के..............मनुष्य के लिए मरे। (12 पंक्तियाँ)
? जीवन की सुख-सुविधाओं में मदांध होकर जीनेवालों को कवि क्या उपदेश देना चाहते हैं?
- धन-संपत्ति के प्रति कवि की राय क्या है?
- सनाथ जीवन के लिए क्या न होना चाहिए?
- यहाँ दीनबन्धु कौन है?
- अभीष्ट मार्ग में किस तरह चलना है?
- "घटे न हेल-मेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी"- यहाँ कवि का तात्पर्य क्या है?
- कवि की राय में क्या नहीं घटना चाहिए?
- क्या नहीं बढ़ना चाहिए?
- हम किस राह के पथिक हैं?
- जीवन का समर्थ भाव किसमें है?
दलों में चर्चा हो। दलों की प्रस्तुति हो।
इन बिंदुओं पर चर्चा करें।
- भूमिका- कवि और कविता का परिचय
- भावविश्लेषण
- कविता की भाषा, बिंब, प्रतीक, प्रयुक्त शब्दावली आदि पर टिप्पणी।
- कविता की प्रासंगिकता।
- अपना दृष्टिकोण।
कविता की आस्वादन टिप्पणी तैयार करें।
लेखन प्रक्रिया -
आस्वादन टिप्पणी।
उपज की प्रस्तुति हो।
उपज का आकलन करें।
अध्यापक की ओर से प्रस्तुति ।
आस्वादन टिप्पणी
मनुष्यता
( मैथली शरण गुप्त )
श्री मैथली शरण गुप्त द्वारा लिखित कविता है- मनुष्यता। मनुष्यता मनुष्य के गुणों का परिचायक तत्व है।यही मनुष्य होने का अनिवार्य अंतरंगी चेतना है । मनुष्य होकर जीना है तो मनुष्य से निड़र होकर जीना है।कवि कहता है कि निड़रता उसका जन्मजात गुण हो । मरने के बाद भी उसकी याद बनी रहनी चाहिए।बेकार का जीना और बेकार का मरना सुमृत्यु नही कहलाएगी।
रतिदेव , दुधीची ,उशीनर ,कर्ण आदि महात्मा जीवनदान करते वक्त डरा नहीं उन्हें जान का मोह नहीं था । देह क्षणिक है, अनित्य है सदा केलिए रहनेवाला सशक्त जीव को डरने की क्या ज़रूरत है। मनुष्यता क्षणिक शरीर के लिए भयभीत न होने का संदेश देती है ।धन के लोभ और मोह में पड़कर ,मदोन्मत्त होकर जीवन की सच्चाई और असलियत को भूलकर जीना भला नहीं होता जीवन की विलासिता में डूबकर जीनेवालों को कवि उपदेश देता है कि धन-दौलत की दौड़ में भूलकर जीवन बरबाद नहीं करना चाहिए। जब तक ईश्वर सहारा देते है तब तक कोई अनाथ नहीं होता । जो कोई मनुष्य के लिए मरे वही मनुष्य कहलाने योग्य है।
विघ्न बाधाओं को पार करते हुए उनका सहर्ष सामना करते हुए अग्रसर होना चाहिए।मेल-मिलाप और प्यार -समता की कमी नहीं होना चाहिए ।मेल-मिलाप और प्यार - ममता कमी नही होनी चाहिए और भिन्नता का भाव भी नहीं होना चाहिए।हम हमराही बनें, इसीमें भलाई है ,औरों को बचाते हुए स्वयं बचें,इसमें सफलता है। मनुष्य के लिए मनुष्यता है ।
गुप्तजी गाँधीवादी दर्शन से प्रभावित आदर्श राष्ट्रकवि है । देश प्रेम , राष्ट्रीयता आदि सात्विक भाव उनकी रचनाओं को प्रौढ़ता प्रदान करता है। मनुष्यता में इन्हीं भावों का समावेश हुआ है।




पाठ्यपुस्तिका की "मैंने क्या किया" शीर्षक पर दी गई जाँच-सूची का इस्तेमाल करेंगे।
"मनुष्यता" कविता में तत्सम शब्दों की भरमार है।
(तत्सम शब्द वे हैं जो संस्कृत से आए हैं और बिना किसी परिवर्तन से हिंदी में प्रयुत्क हैं।)
कविता से तत्सम शब्द छांटकर लिखें।
तारे ज़मीं पर
फिल्मी समीक्षा का वाचन करें।
पाठ्यपुस्तिका के पृष्ठ संख्या 57 में दिए कार्य करें।
बूढ़ी काकी या अन्य किसी फिल्म दिखा दें।
फिल्म समीक्षा दल में तैयार करें।
दल की ओर से प्रस्तुति ।
This is the Video link/URL of "MANUSHYATHA"
ReplyDelete"Manushatha of Mythilisharan Gupt-Summary by A.Narayana Prasad(HIndi)"
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